Thursday, September 9, 2010

बंधे ये कच्चे धागे से जरा झटके से टूट गये,


हम सफर बनाया था जिन्हे ,वो राहो में छूट गये,

मान जाना एक कौशिश में आदत थी जिनकी,

किसी तरहा न माने ,हमसे वो ऐसै रूठ गये,

यॅॅू तो कुछ भी न पास मेरे लूटाने के लिए,

फिर भी जमाने वालो ने मेरा सब कुछ लूट गये ,

जिन्दा रहे किस ख्वाब की ताबीर के लिए,

जिस शख्स की जिन्दगी के सारे सपने टूट गये ,

रोया किसी की याद में इतना ,दीपक ,

आज इन आॅचाो के सारे आॅसू सूख गये,

तुम्हे तो जाना हें तुम जाओगी जरूर ,

मुझको जरा बताओ मेरी खता क्या हें,

मुझको रूलायेगी रात दिन तेरी यादें ,

तुम्हारे प्यार की इससे बडी सजा क्या हें,

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