Monday, October 11, 2010

ये प्रेम मन का,
तुम बिन जलाये किसे,
तुम सा कौन धरा पे,
प्रिय अपना बनाये किसे,
ये प्रेम मन का,
क्यो बात ना मेरी मानो,
तुमसे मिलने को हर पल,
क्यो ढुढता रहे बहाने,
ये प्रेम मन का,
क्यो तुम तक ही सिमित है ,
और किसी को जाने ना,
बस तुम से ही परिचित है
ये प्रेम मन का, तुम को ही बुलाता है
बताऊ कैसे हाल बुरा ,
ये मेरा कर जाता है
ये प्रेम मन का,
देखो ना दुनिया की रस्मे,
हर रीत से बढकर ,
मानता है  अपनी कसमे,
ये प्रेम मन का,
हमसे क्या नही कराता है
बोलो ना जो कभी ,
वो मिथ्या बोल बुलवाता है
ये प्रेम मन का,
अपना पराया जाने ना,
ना देखे कांटे  रहा के,
प्रिय देखे बिन माने ना,

ये प्रेम मन का,
देखे ना रूप ना रंग,
लगे दुध सा शाम तन,
सो सके काँटों  पे प्रिय के संग,

ये प्रेम मन का,
कभी हॅसता कभी रूलाता है ,
सुने  न हो दो बोल जिसने ,
उसे बडे ताने सुनवाता है,

ये प्रेम मन का,
जीवन पथ मोंड जाता है,
लाखो कष्ट रहे फिर भी,
अधरो पर मुस्कान है ,

ये प्रेम मन का,
 एक दीपक जलाये रहता है
कोई पूछे किस लिए ये सब,
वो आज आयेगे कहता है ,

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