Wednesday, November 1, 2017

अब तुम पराई हो

सच कहती हो तुम,
समय नहीं है पास मेरे
तुमसे बात करने का,
सुनने का तुम्हारे मन की
और अपने मन की कहने का ,
परन्तु सच ये भी है कि
चाहता हूँ बस तुम्हे देखना
आंखों में आँखे डाल, निहारते रहना,
और कैद कर लेना अपनी आँखों में
तुम्हारी नई तस्वीर को,
सच ये भी है की
मौका ही न दू तुम्हे , कुछ कहने का
खोल कर रख दू मन की किताब
सामने तुम्हारी, इतनी बातें करूँ,
और सच ये भी है की
डर लगता है अब कुछ भी कहने से
मन के राज खोलने से
क्योकि तुम पर मेरा पहले सा अधिकार न रहा
सच है तुम अब भी मन में समाई हो
लेकिन अब तुम पराई हो, पराई हो

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